Shri Sadguru Satam Maharaj
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  1. असम्भव को सम्भव करनेवाला चमत्कार

    एक दिन श्री महाराज अपने भक्तों के साथ एक मोटर गाडी से कहीं जा रहे थे. अचानक गाडी एक गहरी खाई में जा गिरी. ये चमत्कार ही था कि किसी को भी चोट नहीं लगी. लेकिन श्री महाराज का कहीं अता पता नहीं. बहुत ढूँढने पर भी नहीं मिलने से उनके भक्त चिंता से सूख गये. तब तक सामने की दिशा से एक मोटर गाडी आई और वहॉं रुकी. श्री महाराज को उस गाडी मे आराम से बैठे देखकर सब लोग आश्र्चर्यचकित रह गये.

  2. धीरज का फल मीठा जतानेवाला चमत्कार

    श्री शिर्सेकर और उनकी पत्नी बहुत गरीब थे. घर खर्च चलाना भी मुश्किल हो रहा था. किसी ने बताया श्री साटम महाराज जरुरत मंदों की मदद करते है. बहुत उम्मीद से एक दिन वे दाणोली पहुँचे लेकिन श्री महाराज तो कही और गए हुए थे. उन्होंने हिम्मत नही हारी. पूरे आठ दिन दाणोली मे उनका इंतजार किया. छोटे मोटे काम करके किसी तरह गुजारा करते रहे. काफी दिनों के बाद उनकी किस्मत चमकी जब श्री महाराज के दर्शन उन्हें बाजार में हुँए. महाराज के पैर धोकर उन्होंने आदर जताया. श्री महाराज ने पसारी की दुकान से एक मुठ्ठी चावल देकर उन्हें जाने को कहा. पति पत्नी दोनों खुश थे, श्री महाराज का आशिर्वाद उन्हें प्राप्त हुआ. लेकिन एक मुठ्ठी चावल से उनकी गरीबी कैसे दूर होगी. इसी विचार में उलझें वे लोग चले जा रहे थे कि एक पुराने मित्र उनसे टकराए. बातों बातों में मित्र को लगा कि इस दम्पति की आर्थिक हालत ठीक नही है. उसने शिर्सेकर से पूछा क्या मेरे साथ काम करोगे? वह मित्र चावल विदेशों से आयात करके भारत में बेचता था. उसे अपने व्यवसाय को सम्भालने के लिये एक भरोसेेमंद सहायक की आवश्यकता थी. शिर्सेकर ने तुरंत हॉं कर दी और मित्र के साथ मुम्बई प्रस्थान किया. शिर्सेकर के आते ही मित्र का धंदा दिन दुगना रात चौगुनी तरक्की करने लगा. कुछ समय में ही बढते धंधे को संभालने के लिये शिर्सेकर को रंगून भेजा गया, वहॉं की शाखा को स्वतंत्र रूपसे सम्भालने के लिये. कुछ सालों के बाद शिर्सेकर ने अपने मित्र की सहमती से स्वयं का चावल निर्यात करने का धंधा शुरू किया. और इस तरह शिर्सेकर जिनके खाने के भी लाले पडे थे श्री महाराज की कृपासे लखपति बन गये. श्री महाराज को सोने की पादुकाएं भेट कर वे उनके सच्चे अनुयायी बन गये.

  3. आध्यात्मिक शक्ति के सामने सांसारिक शक्ति नही जतानेवाला चमत्कार

    एक दिन सावंतवाडी के बापुसाहेब सरकार कार से दाणोली जा रहे थे. यकायक एक अधनंगा मनुष्य उनकी कार के सामने आ खडा हुआ. कार रोक कर ध्यान से देखा तो वह आदमी एक हाथ में लकडी की लाठी और दूसरे में नारियल का छिलका लिये हुए था. उस जमाने में कार को इस तरह रोकना मौत से खेलने के समान था. लेकिन बापुसाहेब परेशान नहीं हुए. कुछ समय बाद वो आदमी चला गया. कार दुबारा शुरू करते ही वह फिर सामने आ खडा हुआ. आसपास खडे लोग चुपचाप देख रहे थे मगर किसी में भी इतनी हिम्मत नही थी कि उस आदमी को रास्ते से हटाये या फिर बापुसाहेब से बात करें. बापुसाहेब ने अपने सचिव से कहा कि जाकर पता करो यह आदमी कौन है? लेकिन उसे कोई साफ जवाब नही मिला. बापुसाहेब समझें कि कोई पागल या सिरफिरा होगा. बापुसाहेब ने कार फिर शुरू की तो वह आदमी फिर आ खडा हुआ. इस बार उसने बापुसाहेब से कहा कि सावंतवाडी लौट जाओ दिल्ली जाने की जरुरत नही, जिस काम से तुम दिल्ली जा रहे थे वह काम हो गया है. यह सुनकर बापुसाहेब ने कार वापस सावंतवाडी की और ली. सावंतवाडी पहुँच कर देखा कि सरकारी स्वीकृति के कागजात आ चुके है. दिल्ली जाने की सच कोई जरुरत नही थी. उन्हे पता चला कि वह पागल आदमी और कोई नही श्री महाराज ही थे. तबसे बापुसाहेब उनके परमभक्त बन गये. श्री महाराज की सलाह लिये बिना वे अपना कोई भी निर्णय नहीं लेते थे.

  4. आलोचकों का मुँह बन्द करनेवाला चमत्कार

    एक दिन श्री महाराज कमरे मे सो रहे थे. बाहर उनके भक्त इकठ्ठा थे, उनमे से एक सज्जन कुतूहलवश पहली बार आये थे. उन्हें श्री महाराज पर भरोसा नही बल्कि शक था. खास तौर से जब उन्हे पता चला कि श्री महाराज कभी कभी बियर भी पीते है. अपने विचार उन्होंने आस पास खडे लोगों के पास व्यक्त किये जिन्होंने उसे ऐसी फिजूल बाते करने से मना किया. कुछ समय बाद श्री महाराज नींद से जागे और तैश मे कमरें से बाहर आये. जो चोला पहने हुए था उसे उतारकर जोर से चिल्लाये कौन कहता है कि मै भगवान हुँ, मै तो सन्त भी नही हुँ. मै पीता हुँ, मच्छी और मुर्गी भी खाता हुँ. भगवान सिर्फ मंदिर मे है, यहॉ नही इसलिये चले जाओ. फिर वे गाली देते हुए सडक पर आए. एक सुतार की दुकान मे घुस गये और बोले मै सन्त नही, मै मांस भी खाता हुँ और बियर भी पीता हुँ. यह कहते कहते उन्होने तेजाब से भरी एक बोतल उठाई और अपने मुँह मे उडेल ली. लोग समझे की श्री महाराज गए काम से, लेकिन कुछ नही हुआ, बस वे शांत हो गये. दरअसल वे नाराज नहीं थे यह पूरा नाटक उन्होंने लोगों के मन से उनके बारे मे शक दूर करने के लिये किया था, जो उनकी आलोचना कर रहे थे उन्हे श्री महाराज की शक्तियों का नमूना देखकर अपनी संकीर्ण विचारधारा पर शर्म आयी. श्री महाराज शराब पीते या मांस खाने के विरुद्ध नही थे लेकिन उन्हें इस सब से कोई लगाव भी नही था. सच तो यह है कि वे शारीरिक लगाव के परे थे. जिन्हें यह बात पता नही थी वे लोग उनकी आलोचना करते थे.

  5. जीवों तथा प्रकृति से मेल का चमत्कार

    एक दिन महाराज अकेले जंगल मे ध्यान मग्न थे कि एक बाघ ने उनपर हमला किया. उनके कंधे पर चोट भी आयी. लेकिन श्री महाराज को महसूस हुआ बाघ सिर्फ उनका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना चाहता था जैसे कि उनके दर्शन करना चाहता हो. उन्होंने उसकी तरफ स्नेह से देखा और बाघ चुपचाप वहॉं से चला गया. उन्हें अपनी चोट की चिंता नही थी. बस्ती मे वापस आने पर उन्होंने एक दुकानदार से गुड मांगा यह कह कर कि चोट पर जमा किडों की भूख मिटानी है. दुकानदार ने आश्र्चर्य से उनकी ओर देखा. कुछ दिन के बाद बिना कुछ किये घाव अपने आप भर गया.

  6. भगवान के रुप में भक्त को दर्शन देनेवाला चमत्कार

    सावंतवाडी का एक गाडीवान भगवान विठोबा का परमभक्त था. हर साल आषाढी एकादशी को पंढरपुर दर्शन के लिये अवश्य आता था. एक बार दर्शन करके वापस लौटने लगा तो उसे हैजा हो गया. इतना तेज की वो अधमरा हो गया. ऐसी हालत मे उसके साथी उसे अकेला छोडकर चले गये. जब भी उसे होश आता सिर्फ यही प्रार्थना करता हे भगवान मै किसी पर भार नही बनना चाहता उठाना है तो तुरन्त मुझे उठा लो. सोते समय सपने मे उसने एक साधु को देखा. साधु ने कहा तुम सोये क्यो हो, उठो भूख लगी होगी मैने तुम्हारे लिये चावल और करी का इंतजाम किया है चलो उठो! यह कह कर साधु ने झिंझोडकर उसे उठा दिया. उठकर देखा तो साधु नही था लेकिन उसमे चलने फिरने की ताकत आ गई थी. कृतज्ञता से उसने पंढरपुर छोडने से पहले विठोबा के दर्शन दुबारा लिये. वापसी में वह अंबोली एक धर्मशाला मे रुका. उसे लगा किसीने उसे आवाज दी है. देखा तो वही साधू उसे बुला रहा था. गाडीवान ने साधु के पैर छुए. साधु ने उसे गले लगाकर कहा तुमने कई दिनों से कुछ नही खाया है. मैने तुम्हारे लिये चावल और करी मंगार्ई है आओ खाए. दोनो वापस धर्मशाला आये जहॉं एक चरवाहा साधु की प्रतीक्षा कर रहा था. पैर छूकर उसने साधु से कहा महाराज आपने रात सपने मे मेरी पत्नी को चावल करी बनाने का आदेश दिया, यह भी कहा कि इसे धर्मशाला भेज दो. साधु, चरवाहा तथा गाडीवान ने भरपेट भोजन किया. गाडीवान बहुत कृतज्ञ था कि श्री महाराज ने साधु के रुप में विठोबा का अवतार बनकर उसे दर्शन दिये.


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