श्री महाराज द्वारा किये गये चमत्कारों का वर्णन करने से पहले यह समझना आवश्यक है की चमत्कार आखिर है क्या.
चमत्कार न तो जादू है और न ही लोगों पर साख जमाने के लिये किया जाता है. सच तो यह है की चमत्कार मानवता के प्रति प्रेमभावना की अभिव्यक्ति है.
हर चमत्कार के पिछे एक कारण होता है जो या तो सद्गुणों को प्रेरित करता है या अवगुणों को दर्शता है. दोनो ही सूरतों में चमत्कार ईश्र्वर के अस्तित्व की मान्यता दर्शाकर लोगों को परमार्थ के मार्ग पर अग्रसर करता है.
यदि हम अपने जीवन के सत्य पर आधारित करके भक्ति सेवा में लीन हो जाये तो हम भी चमत्कार अनुभव कर सकते है. अगर हमारा पूरा ध्यान सत्य तथा प्रेम भावना पर केंद्रित हो न कि चमत्कार पर.
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सच्ची शिवभक्ति का चमत्कार
दाजी मातोंडकर एक डॉक्टर होने के साथ सच्चे शिवभक्त भी थे. लेकिन वे संतो और गुरुओं को नही मानते थे. एक दिन मित्रों कि सलाह पर वे श्री साटम महाराज के दर्शन करने चल पडे. दाजी ने श्री महाराज के चरणों मे सर झुकाया ही था की श्री महाराज के मुख से उन्हे ॐ नम: शिवाय सुनाई पडा. यह सुनकर वे अचभ्भित रह गये और सोचने लगे कि बिना बताये श्री महाराज को कैसे मालुम पडा कि वे शिव भक्त है. श्री महाराज ने उन्हे बताया कि उन्हे शिव भगवान का आशिर्वाद प्राप्त है. तथा उनकी और एक जलता हुआ लकडी का तख्ता फेंक कर उन्हे उस पर बैठने का आदेश दिया. बिना दिक्कत दाजी उस पर बैठ गए. वहॉं उपस्थित लोग यह देख कर आश्र्चर्य चकित रह गये कि दाजी के उस पर बैठते ही आग यकायक लुप्त हो गई बल्कि दाजी को लगा जैसे वे गंगाजल पर बैठे हो. श्री महाराज ने दाजी कि ओर एक कोयला फेंका जिसे दाजी ने एक कपडे में लपक लिया. श्री महाराज ने बताया कि यह शिव भगवान का प्रसाद है जिसे वे घर पहुँचने के बाद ही खोलें. घर पहुँच कर दाजी ने स्नान किया फिर श्री महाराज की सलाह के अनुसार शिवजी कि मूर्ति के सामने उस कपडे को खोला. यह देख कर वे खुशी से फूले न समाये कि कपडे मे कोयला नही शिव लिंग था.
इस तरह श्री महाराज ने दाजी की सच्ची शिव भक्ति को सबल बताने के साथ साथ उन्हें और अधिक उत्साहित भी किया.
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आलोचकों को चुप करनेवाला चमत्कार
रत्नागिरी के कुछ नौजवानों को साधु-संतो और चमत्कारों मे विश्र्वास नही था. श्री महाराज के चमत्कारों के चर्चे सुनकर उन्हें लगा कि यह सब लोगों को हलने के लिये ढोंग है. श्री साटम महााज का भन्डा फोडने के इरादे से वे लोग दाणोली आये. उसी दिन दाजी मातोंडकर भी वहॉं पहुँचे. दाजी मातोंडकर की घटना देखकर उन्हे पता चला कि श्री महाराज के बारे में उन्हे गलत धारणा थी. श्री साटम महाराज की, आध्यात्मिक शक्तियों पर उन्हें तब और भी भरोसा हो गया जब अपने सामने उन्होंने श्री महाराज की एक पुराने सुनसान घर को एक ही दृष्टि से भस्म करते देखा. बाद में उन नौजवानों ने श्री महाराज से मिलकर क्षमा मॉंगी. श्री महाराज ने उनके नीच इरादों की अवहेलना करते हुए उन्हें सच्चे मनसे आशिर्वाद दिया. तबसे वे सब श्री महाराज के भक्त बन गये.
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पीडा हरानेवाला चमत्कार
एक दिन यकायक श्री साटम महाराज सडक पर एक मुस्लिम महिला का हाथ पकडकर मै तुम्हें नहीं छोडूंगा कहते हुए उसे मारने लगे. यह देखकर लोग अचम्भित रह गये और समझें कि श्री महाराज पागल हो गये है. उन्हें लगा कि इस पागल कि मजा चखाने का यह अच्छा मौका है. उस महिला के बेटे की उन लोगों ने श्री महाराज कि पुलिस में शिकायत दर्ज कराने के लिए उकसाया. पहले तो वह डर गया लेकिन फिर लोगों कि बातों मे आकर उसने शिकायत दर्ज करा दी. श्री महाराज को गिरफ्तार कर लिया गया. उनके अनुयायी चिंतित हो गये. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या करें. आखिर अप्पा सबनिस नामक अध्यापक जो श्री महाराज के भक्त भी थे. उन्होंने महाराज कों जमानत दे कर छुडाया. उस महिला का पति उससे दूर रहता था और टीबी से इतना पीडित था कि कभी भी दम तोड सकता था. जिस समय उस महिला की पिटाई हो रही थी, लगभग उसी समय उसने सपनें में एक फकिर देखा जो कह रह था मैं तुम्हें नहीं छोडूंगा और तुम्हारी पत्नी की पिटाई हो रही है. डर के मारे उसकी आँख खुल गई. उठ कर उसने पानी पिया और पानी पितेही उसे लगा कि वह ठीक हो गया है. वापस आकर उसने यह सपना अपनी पत्नी को बताया. पत्नी समझ गई कि यह सपना उसकी पिटाईवाली घटना से संबंधित है. उसने वह घटना अपने पति को बताई और उन दोनों को विश्र्वास हो गया कि श्री महाराज ने ही उसे टीबी से मुक्ति दिलाई है. उन्होंने तुरन्त जाकर श्री महाराज के पैर पकडकर क्षमा मांगी. जेल भेजने के लिए उनसे नाराज न होते हुए श्री महाराज ने उन्हे आशिर्वाद दिया. उसी वक्त से दोनो उनके अनुयायी बन गए.
यह चमत्कार बताता है कि पीडित चाहें कही भी हो, श्री महाराज उन्हे पीडासे मुक्ति दिलाते है.
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भक्तों का भरोसा बनाये रखनेवाला चमत्कार
एक बुढी महिला श्री महाराज कि इतनी भक्त थी कि उनकी फोटो को चढाये बिना कभी भोजन न करती थी. एक दिन उसके मन मे श्री महाराज को अपने हाथों से मटन चपाती खिलाने की प्रबल इच्छा जगी. वह 2 लोगों के लिए मटन चपाती लेकर उनके पास पहुँची. लेकिन श्री महाराज तो 15 लोगों से घिरे हुए थे. श्री महाराज ने उन्हे बताया कि हम सब इस महिला का बनाया हुआ मटन चपाती खाऐंगे. उनका बालू नामक सेवक घबरा गया कि खाना तो सिर्फ 2 लोगों के लिए है. इतने सारे लोग कैसे खाऐंगे? साहस करके यह बात उसने श्री महाराज को बताई. श्री महाराज ने कहा चिंता मत करो पहले मुझे खिलाओ फिर अन्य सबको. महाराज की आज्ञा पालन के सिवा बालू के पास कोई चारा न था. महिला ने पहले अपने हाथों से श्री महाराज को मटन चपाती खिलाई. फिर महाराज ने बालू से अन्य सबको खाना खिलाने के लिए कहा. बेफिक्र बालू ने लोगों को खाना खिलाना शुरु किया. बालू यह देखकर दंग रह गया कि खाना तो खत्मही नही होता था. सबको भरपेट खिलाने के बाद भी खाना बच गया था. इस तरह श्री महाराज ने अपने सच्चे भक्त का मान रखा.
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अहम् भावना धराशायी करनेवाला चमत्कार
कला महर्षि बाबुराव कोल्हापुर के प्रख्यात फोटोग्राफर थे. एक दिन वे सावंतवाडी के बापूसाहेब सरकार के साथ श्री महाराज के दर्शन के लिए आये. उन्होंने बापूसाहेब से श्री महाराज कि फोटो खीचने कि अपनी इच्छा जाहिर की. बापूसाहेब थोडा फिक्र कर रहे थे. श्री महाराज को अच्छे मूड में देख कर उन्होंने उनसे इस बारे मे बात की. श्री महाराज ने फोटो खींचने की आज्ञा तो दे दी लेकिन कहा कि फोटो तो सिर्फ तन दिखाती है जिसका कोई मतलब नहीं जबतक मन शुद्ध और नम्र न हो. उन्होंने ऐसा इसलिए कहां क्योंकि वे जानते थे कि बाबुराव बहुत स्वार्थी फोटोग्राफर है कि जिन्हें अपने कौशल पर अहम् घमन्ड है. वे सिर्फ श्री महाराज की फोटों खींचकर पैसे बनाना चाहते थे. बाबुराव ने अलग अलग मुद्रा मे 18 फोटो खींची. उनके चेहरे पर घमन्डभरी मुस्कान थी. घर जाकर उन्होने जब रील डैवलप की तो उनके चेहरे की मुस्कान गायब हो गई क्योंकी सारे निगेटीव खाली थे. वो इसलिये कि स्वामी महाराज बाबुराव की अहम् भावना जानते थे और नही चाहते थे कि वे उनकी फोटो खींचे. अगर बाबुराव ने ईमानदारीसे अपना असली इरादा श्री महाराज को बताया होता तो शायद उन्हें निराश न होना पडता. यह चमत्कार इस बात की पुष्टि करता है कि अहम्-स्वार्थ और छल कपट श्री महाराज के सामने नही चलते.
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जात-पात से परे मानवता की सेवा का चमत्कार
एक मुस्लिम महिला पेट के दर्द से परेशान थी. दर्द इतना तेज मानो जान ही निकल जाये. बहुत इलाज किया लेकिन कोई फायदा नही. तंग आकर वह अपनी जान स्वयं लेने के बारे में सोंचने लगी. एक दिन जब उसका भाई दूर शहर से लौटा तो अपनी बहन की हालत देख कर पसीज गया. उसने सुझाया कि जब दवां दारु काम न आये तो परवर दिगार से मदद लेनी चाहिए. जीजाजी को उसे मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह ले जाकर मन्नत मांगने की सलाह दी. बडी उम्मीद से वे लोग मुसलमानों की सबसे बडी दरगाह जो हर इन्सान की मन्नत पूरी करती है वहॉं माथा टेंकने अजमेर पहुँचे. पूरे तीन दिन तक वे दान पुण्य करके दरगाह पर चादर चढाकर इबादत करते रहे. एक रात सपने मे उन्हें दाणोली जाकर श्री साटम महाराज की शरण मे जाने का संदेश मिला. तुरंत वे दाणोली के लिए रवाना हो गये. उनके वहॉं पहुचने के पहले ही श्री महाराज ने अपने अनुयायिओं को बताया कि कुछ लोग अजमेर से आ रहे है. उन्होने पेट्रोल से भरी एक बोतल तैयार रखने का आदेश भी दिया. जैसेही मुस्लिम दम्पत्ति वहॉं पहुँचे, श्री महाराज ने उस महिला का मुँह खोलकर पूरी पेट्रोल की बोतल उसके मुँह में उडेल दी. उस महिला का पति तथा उपस्थित लोग यह देखकर दंग रह गये. यकायक महिला को लगा कि वह ठीक हो गई है. वाकई मे उसकी बीमारी पूरी तरह गायब हो गई थी. उस दम्पति ने पैर छूं कर श्री महाराज के प्रति अपनी कृतज्ञता जताई तथा उनके सच्चे अनुययी बन गये.