Shri Sadguru Satam Maharaj
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महाराज जी के गुरु अब्दुल रेहमान शाहबाबा का परिचय
अब्दुल रहमान बाबा के पूर्वज बगदादसे थे. बाबा के वालिद हजरत शमशोद्दीन कादिर बगदाद से भारत में मद्रास के सेलम जिले में सन्नूर यहॉं आकर बस गये थे. वही बाबा का जन्म हुआ, उनकी धर्म की तालीम यहीं पर हुई. उसके बाद बाबाने कुराण पढकर हाफिस हो गये. बाद में बाबा बम्बई के जांबली मोहल्ला (बापू खोटे स्ट्रीट) पायधुनी यहॉं मस्जीद में आकर रहने लगे. इस बीच उन्होंने मक्का मदिना (सौदी अरेबिया) यहॉं की हज यात्रा करके वह हाजी हो गये. इसी दौरान उनकी मुलाकात सुफी पंथके मिर्झा सिनीयाजी से हुई. उन्होंने बाबाको सुफी और सिंधी इनमें सुलाह करके उन्हें एक सुत्र में बांधने की कला सिखाई. उन्होंने ही बाबा को शिवलींग प्रदान किया. यह शिवलींग आखीर तक बाबा के साथ था.

रेहमान बाबा का असाधारण कार्यक्षेत्र
मिर्झा सिनीया और बाबा हज करके आ रहे थे तभी उनकी भेंट अक्कलकोट के स्वामी समर्थजी से हुई. स्वामीजी नें अपनी तेजस्वी नजरों से तेज बाबा की आँखो में छोडा और वह चले गये. उसके बाद मिर्झा सिनीया जी को सपनें में जाकर स्वामीजी ने अक्कलकोट आनेका बुलावा भेजा. स्वामीजी ने वहॉं बाबा को श्री अक्कलकोट निवासी श्री दत्तस्वरुपाय नम: यह मंत्र दिया और अपना अवतार कार्य करने कहा. अक्कलकोटसे सिधे बम्बई आनेके बाद बाबा मस्जीदसे बाहर निकले. हाथ में डंडा और लोखंड का गोला लेकर भेंडी बाजार और डोंगरी के आजूबाजू के जगहों पर सेवा कार्य करने घूमने निकले. बढी हुई दाढी, काफी पूरे बदन पर कपडे होते थे, या कभी बीना कपडों के घुमते हुए बाबाको देखकर लोग डरकर उनसे दूर रहते थे. लेकीन उनके द्वारा किये गये चमत्कारोंको देखकर उनके भक्तगणों की संख्या बढने लगी. किसी को कोई इच्छा होती थी तो बाबा अपने डंडेसे उसे मारते थे. फौरन उस भक्त की इच्छा पूरी हो जाती थी. खास करके बिमार आदमी की बिमारी ठिक हो जाती थी. इस प्रकार बाबा की शोहरत चारों दिशाओं में फैल रही थी.




अब्दुल रेहमान शाहबाबा

गुरु शिष्य का मिलाप
इसी दौरान चर्चगेट के नजदीक पारसीयों के कुएँ पर ही साटम महाराज जी बैठे थे, तभी बाबा रेहमान वहॉं आ गये. तभी बाबाने महाराजजी को कहा जो प्रकाश मेरे बापने मुझे दिखाया, वो तुझे दिखाने के लिए मुझे इधर मेरे बापने भेजा है. यह कहकर उन्होंने अपने शरीर से ईश्र्वरी तेज महाराजजी के शरीर में छोडा और वह चले गये. उसके बाद महाराजजी डोंगरी में बाबा के दर्शन के लिए जाते थे. आज जहॉंपर डोंगरी पुलिस थाना है, उसके बाजू में पहाडी पर तभी बाबाकी बैठक होती थी, उस बैठक में महाराजजी जाते थे. कभी कभी अपने लाडले शिष्य को मिलने के लिए बाबा भी जाते थे. बाबा से दिक्षा पाने के बाद महाराजजी तपश्चर्या करने के लिए पूरे भारत देश में भ्रमण करने के लिए निकल पडे. उन्होंने अपना कार्य शुरु किया, कार्य करते करते दाणोली में ठहर गयें. ऐसे ही एक दिन दाणोली में साटम महाराज बहुत रोने लगे तभी भक्तगणोंने उनसे रोने का कारण पुछने पर उन्होंने बताया आज मेरा गुरु चला गया. उसके बाद कुछही देर में रेहमान बाबाकी निर्वाण की खबर बम्बई से वहॉं पहुंची. 27 दिसंबर 1916 में उनका निर्वाण हुआ. उनकी उम्र अंदाजे 125 वर्ष की थी.

बाबा की दर्गाह (तांडेल स्ट्रीट, छत्री सारंग मोहल्ला, डोंगरी) और बैठक (डोंगरी पुलिस थाना)
बाबा की इच्छा के अनुसार छत्री सारंग मोहल्ला (जहॉं पर बाबा अक्सर बैठते थे) वहीं पर उनकी कब्र बनायी गयी और वहींपर उन्हें दफनाया गया. उनकी चीजों को भी साथही रखा गया. उसके बाद वहीं पर उनकी दर्गाह बनायी गई. आज के डोंगरी पुलिस थाने के बाजूंमे पहले पहाडी हुआ करती थी. उस पहाडी पर पेड के निचे एक पत्थर पर बाबा बैठते थे, और नमाज भी पढते थे. उनके निर्वाण के बाद 1923 में डोंगरी पुलिस थानेकी जगह बढाने के इरादे से पहाडी तुडवाने का काम शुरू हुआ. पूरी पहाडी तोडी गयी लेकीन जहॉंपर बाबा बैठते थे वह पत्थर टूट नही रहा था. इसलिए सुरंग लगाए गये, फिर भी वह पत्थर टूटने के बजाय उसमें से खून निकलने लगा. वह खून जॉंच के लिए भेजा गया तब वह मनुष्य का खून होने का प्रमाण मिला. फिर पुलिस आयुक्त ने बाबा की दर्गाह पर जाकर मॉफी मांगी, तभी खून आना बंद हुआ. उस सुरंग के निशान आज भी मौजूद है. उसके बाद वहांपर दिवार बनाकर वह जगह एक पवित्र स्थल के रूप में जानी जाती है.

दर्गाह में उर्दू तारीख 1 जमादिल अव्वल हरसाल 10 दिन बाबा का उरूस (मेला) होता है. इन दिनों में रोज 10 दिन संदल जुलूस निकलते है और 5 वे दिन डोंगरी पुलिस थाने के बाबाकी बैठक को संदल जुलूस का सम्मान दिया जाता है. कव्वाली का कार्यक्रम होता है. 10 वे दिन समारोप कार्यक्रम होता है. बाबा का नियाज गोरगरीब और भक्तोंमे बांट दिया जाता है. बाबा के भक्तों में मुस्लिम के साथ हिंदू भी भक्त बहुत थे और आज भी है. बाबा शरीर से मौजूद थे तभी जितने चमत्कार उन्होंने करके दिखाए उतनेही चमत्कार उनके शरीर छोडकर जानेपर अब भी हो रहे है. बाबा की कृपा आज भी भक्तोंपर हो रही है और निरंतर ऐसीही होती रहेगी.

चमत्कार
  • एक लडके की सिर में बहुत फोडींया हुई थी. किसी भी दवा का कुछ भी असर नही हो रहा था. बाबा ने उस लडके के सिर में डंडा मारा, उसके सिर से खून बहने लगा. कुछ ही दिनों में वह किसी दवा के बगैर ठिक हुआ.
  • एक 10 साल के लडके का बुखार जा नहीं रहा था. बाबा ने उसको केले खिलाए और कुछ ही देर में उसका बुखार उतर गया.
  • एक आदमी समंदर में जहाज पर काम के लिए जाने से पहले बाबा का आशीर्वाद लेने के लिए आया. बाबाने उसको जहाज पर जाने से मना किया और वह जहाज पर नहीं गया. 15 दिन के बाद उस जहाज और जहाज के सभी लोग समंदर में डुबकर लापता होने की खबर आयी.
  • बाबा के निर्वाण के बाद, बाबा के दर्गाह के ट्रस्टी मियॉं शेट महम्मद छोटानी लंदन गये थे. वापिस लौटते समय अचानक उनकी जबान बंद हो गयी. 1 महिने तक वह बोल नहीं सके थे. उनके एक दुश्मन ने कब्रस्तान में एक बकरे का कटा हुआ सिर गाढ दिया था. जिस वजह सें उनका बोलना बंद हुआ था. बाबा रेहमानजीने पीर इब्राहीम के सपने में जाकर यह बात जाहीर की. उसके बाद वह सिर बाहर निकाला गया और तुरन्त छोटानीजी बोलने लगे.
  • एक बार एक आदमी बाबा के खिलाफ रपट लिखवायी. बाबा को कैद किया गया. जितनी बार उन्हें कोठडी में डालते थे. ताला होते हुए भी बाबा बाहर दिखाई देते थे. पुलिसवाले उनको कैद नहीं कर सके. ऐसे असाधारण मसीहा को कोई कैसे बंद करके रख सकता है.
  • एक बार बाबाने एक गरीब औरत से चाय मांगी, उस औरत ने बाबा को चाय पिलायी. बाबाने सामने जलनेवाले चुल्हें में से दो कोयले उठाकर उस कप में डालकर उस औरत को देकर चले गये. बाद में उसने देखा तो कोयला सोना बना था.
  • एक आदमी का फुल बेचने का धंदा था, किराऐं के घर में वह रहता था. काफी दिनों से वह किराया नहीं दे सका था. वह बाबा के पास आया तभी बाबाने उसको शाम तक वहींपर बैठने के लिए कहा. शामको एक आदमी आया, उसने फुलवाले कों एक पैसों की थैली दी. फुलवाले नें पैसे गिने तब वह पैसे उतनेही थे जितना उसको किराया चूकाना था.
  • जहाज का कप्तान बाबा से मिलने आता था. बाबा के निर्वाण के बाद भी वह दर्गाह पर आता था. एक रात उसने सपना देखा कि तुम दाणोली में जाकर साटम महाराज को मिलना. वह ढूँढते ढूँढते दाणोली पहुँच गया. उसने महाराज जी के दर्शन किये.
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